मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

शुभकामना



ये तय हो गया, 
जबकि चिट्ठियाँ नहीं 
और न ही कोई डाकिया ऐसा 
जो खटखटा सके तुम्हारा किवाड़,
बिना पूछे किसी से ताकि 
एक दूरी तुमहार-मेरे बीच बनी रहे, 
परिचितों की दृष्टि मे निरंतर,
और मैं लिख दूँ कागजों मे 
अपनी उत्तेजनाएं, आशीर्वाद और लाड़,
मुझे स्वीकार करनी होगी दूरियाँ 


जैसा कि होता आया है अक्सर 
अपनी बधाई और शुभकामनायें
मैं छोड़ देती किसी गुमनाम चौराहा 
जिसमे शब्द तो नहीं होते 
पर जिसे तुम सहज स्वीकारते 

 
आज, तुम्हारे दुबारा पिता बन जाने पर 
मैं दे रही हूँ एक बार फिर 
वैसी ही बधाई और शुभकामनायें 

 
स्वीकार हो न हो तुम्हें, 
उस चौराहे कभी गुजरो न गुजरो, 
मैंने मान लिया इसे स्वीकृत 
क्योकि अभी अभी मेरी आँख फड़की 
और दिल जो दर-असल तुम्हारा ही है 
धडक कर शोर कर रहा है
कि तुमने दुलारा है नवजात को
उसकी माँ की गोद से लेकर

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