शनिवार, 8 मार्च 2014

कल्लू परछाई

जब मुझे नहीं पता चलता तब समाज बता देता है तू तो चोर है और तब मैं भागता हूँ ढूँढता हूँ वकील और दोस्त पुलिस जब कुछ लोग बता देते हैं मेरी किसी बीमारी के बारे मे तब मैं डाक्टरों को ढूँढता हूँ हर रोज जब पूछता हूँ भागता हूँ किसी के पीछे अपनी ही तलाश मे निकलता हूँ चेहरे व्यापार करते मिल जाते है 

भागा भागी मे 
कहाँ जिया खुद को 
बस झेलता रहा खुद को 
तलाशता रहा समस्याओं की जड़  

आज कल्लू से पूछा खुद के बारे मे वही कल्लू मेरी परछाईं... उसने बताया इंसान के विषय मे और तब लगा क्यों न भागूँ आज एक इंसान के पीछे ढूंढ लूँ खूद को 

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