पहाड़ की पीठ पर बैठ कर
वो बहुत दूर जाना चाहती थी
चूहे को एक शरारत सूझी जब
उसे खोदना पड़ा चप्पा चप्पा
गर्दो गुब्बार का लावा बह गया
अनंत आकाश
खुद रही थी जब पहाड़ की पीठ
ध्वस्त हो रही थी ऊंचाई तब
कोहराम चूहे की शरारत पर
हाहाकार तीसरे नेत्र के खुलने से
अब वहाँ एक समतल मैदान था
और वो घोड़े की पीठ पर बैठी थी
शांत, नैराश्य विहीन चेहरा
दौड़ते घोड़े की पीठ पर एक ठहराव
वाकई आज बहुत दूर आ गई थी
चूहे से अब उसे कोई शिकायत नहीं
चूहा भी मुस्कुराकर चल दिया
किसी दूसरे पहाड़ पर बैठे
ऐसे ही किसी अंजान के पास
एक नई शरारत करने
क्योंकि दुनिया मे अब तक
वो सभी पहाड़ जो खुदे है,
चूहे की शरारत हैं !
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