रविवार, 6 अप्रैल 2014

लोकतंत्र का एक पर्व


इसी दुनिया के एक कोने में
सुना है, 
कोई पर्व मना रहे हैं
कहते हैं लोकतंत्र है

लहू के धब्बों के बीच
चिथडो में पैदा और
आवारगी में पली जवानी को
एक बार फिर सींच देंगे
नमक मिले पानी से
नाम पसीने का होगा
और हलाल होगी
बदहाल युवा पीढ़ी
तभी तो लहलहाएगी
झूठ और फरेब की फसल

चलो अपना फर्ज निभाते हैं
एक बार फिर अपना मत
किसी गटर में डाल आते हैं
अभियक्ति की आजादी के नाम पर
ताकि अगली सुबह दुनिया कह सके
जीत हुई एक बार फिर
भारतीय लोकतंत्र की

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