शनिवार, 5 अक्तूबर 2019

राजगद्दी

माफी



भाई कहता है माफ कर दो
बच्चे खेल-खेल में गलती कर जाते हैं
बहन नहीं मानती,
उधेड़े अधोवस्त्र और उनसे झांकते
चोटिल सिसकते अंग उसे रोकते हैं

अंगों की टीस नहीं भूलने देती
बहन को भाई की जाहिलियत


मगर धीरे-धीरे विस्मृत होता समय
ढंक जाते हैं जख्मी सिसकते अंग
गठबंधन के मखमली अधोवस्त्रों से
दिल पसीजता है एक दिन
सत्ता की आहट कान में पड़ते हीं

और उसी प्रदेश के मुरैना में
चोटिल होती है एक और बहन
भाई को पता है,
माफ करती हैं बहनें
क्योंकि विस्मृत होती है पीड़ा
कुछ चित्कार और हाहाकार के बाद

देश की राजनीति ने तय किया है
हां,
समाजवादियों और बहुजनों ने तय किया है
दुहराव की प्रक्रिया इस तरह
जारी रहेगी हर बार
किसी को मिलेगी सत्ता
और किसी को बाप की लाश


____मुकेश कुमार सिन्हा____


शनिवार, 26 जनवरी 2019

चिंता

रात अक्षरशः आगे बढ़ती है
मैं कविता नहीं कहता हूं
इससे पहले कि सो जाए दुनिया
बच्चों को लोरियां सुनाता हूं!