मंगलवार, 4 मार्च 2014

घुसपैठिये


ठंढ मे कंपकपाती देह लिए 

रोटी की जुगाड़ मे निकलने को 

स्थूलकाय लंगड़ाती घिसटती 

हर दो कदम के बाद लौट आती 


अंजान भय घुसपैठियों का 

उसी सा दिखता राहगीर 

आज वो किसी को नहीं छोड़ेगी 

पर घुसपैठिया माँ से भी चौकस 

उसे पता है पेट की भूख 


माँ के दूर चले जाने के साथ ही 

घुसपैठिया वापस आता है 

हाथ मे है दूध की कटोरी 

शायद उसने छुप कर बचाया है 

माँ की डांट फटकार के बावजूद 

और उड़ेल देता है भरपूर प्यार 


हाँ लिंग परीक्षण करना नहीं भूलता 

मासूम घुसपैठिए को चाहिए 

एक अदद पिल्ला 

उसकी अपनी भाषा मे 

तुतिया ना तुत्ता 

(तुत्ता=कुत्ता)

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