ठंढ मे कंपकपाती देह लिए
रोटी की जुगाड़ मे निकलने को
स्थूलकाय लंगड़ाती घिसटती
हर दो कदम के बाद लौट आती
अंजान भय घुसपैठियों का
उसी सा दिखता राहगीर
आज वो किसी को नहीं छोड़ेगी
पर घुसपैठिया माँ से भी चौकस
उसे पता है पेट की भूख
माँ के दूर चले जाने के साथ ही
घुसपैठिया वापस आता है
हाथ मे है दूध की कटोरी
शायद उसने छुप कर बचाया है
माँ की डांट फटकार के बावजूद
और उड़ेल देता है भरपूर प्यार
हाँ लिंग परीक्षण करना नहीं भूलता
मासूम घुसपैठिए को चाहिए
एक अदद पिल्ला
उसकी अपनी भाषा मे
तुतिया ना तुत्ता
(तुत्ता=कुत्ता)
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