कि जब देखता हूँ
सृष्टि की विविधता
अपनी क्रियाशीलता
औरों की निसक्रियता
किसी के होने न होने मे
कुछ अन्य की सहभागिता
होने न होने के बीच
उबलने, शुष्क पड़ने
और फिर वो एक ऊर्जा
फैलती सिमटती
कभी समय के रूप मे
कभी फडफड़ाती नसों मे
और उबलते खून की शक्ल मे
दोहन और कभी उत्सर्जन मे
तब लगता है ये जीवन
जैसे एक प्रयोगशाला है..... मुकेश
सृष्टि की विविधता
अपनी क्रियाशीलता
औरों की निसक्रियता
किसी के होने न होने मे
कुछ अन्य की सहभागिता
होने न होने के बीच
उबलने, शुष्क पड़ने
और फिर वो एक ऊर्जा
फैलती सिमटती
कभी समय के रूप मे
कभी फडफड़ाती नसों मे
और उबलते खून की शक्ल मे
दोहन और कभी उत्सर्जन मे
तब लगता है ये जीवन
जैसे एक प्रयोगशाला है..... मुकेश
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