मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

रौद्र चाहिए


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मुझे तेरा रौद्र चाहिए 
थोड़ी सी जगह लूँगा 
जगह तेरी बालकोनी की 
देखूंगा चाँद और तेरी दिल्ल्ली 
परवरिस की सौंधी महक 
खींचती मुझे उस ओर 
दिखता है जिधर चाँद 
परिपूर्ण तेरी बालकनी से 
नथुना भर हवा चाहिए 
जिसमे हो तेरी सुगंध 
एक खनक भरी जीवटता की 
तेरी जिद्द की हो जिसमे अनुगूँज 
वो जिद्द जिसने खड़ा किया 
ढहते शहर को दुबारा 
एक परिवार की शक्ल 

मुझे तेरा रौद्र चाहिए 
तेरी मादकता नहीं भाती 
और न ही डिंपल तेरे गलों के 
तेरी भुजाओं का पाश गंवारा नहीं 
न ही तेरे जिस्म की चादर प्यारी 
मुझे तो बस तेरा रौद्र चाहिए 
और सम्पूर्णता एक नारी की 
मुझे तेरा तांडव भी चाहिए 
तू ही मेरी अर्धांगिनी बने 
मै नहीं चाहता 
मेरी चाहत मैं बनू तेरी सम्पूर्णता 
मैं तुझमे केन्द्रित हो जाऊं 
मेरा वजूद, मेरे सपने 
सब कुछ समा जाए तुझमें 
गंगा आज बहा दूँ मैं उल्टी 
या सूरज ही उगा दू पश्चिम में 
अथवा शाम से ही मान लूँ 
एक नए सुबह की शुरुआत 
तम से लड़ लेंगे मिलकर 
चाहता हूँ यही 
तेरा साथ चाहिए 
तेरे डिंपल नही
और न ही तेरा वक्ष चाहिए 
मुझे तेरा अक्ष चाहिए 
और इसलिए 
मुझे तेरा रौद्र चाहिए...
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