डरता हूँ
राजनीति से
तुम्हारी विवशता
और उसकी चपलता से
कुछ भी नहीं छुपा
जो मेरे साथ है
मेरे अंदर ज़िंदा
लेकिन क्या देख पाते होंगे
वो सभी जो मुझे जानते हैं
धर्म संकट मे हूँ
उसकी मासूमियत
तार-तार कर रही
मेरे वजूद को
जो जुड़ चुका
मेरे वर्तमान से
तुम्हारा अतीत
एक परछाई की शक्ल
जो रहता है मेरे भीतर
अमूर्त रूप मे
अब डरा रहा है.
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