सुनो,
एक दिन जब मैं
बहुत दूर चला जाऊंगा
कि पास रह कर भी तुमसे
अपरिचित सा हो जाऊंगा
तुम्हारी बातें और शरारतें
और यादों के ढेरो पुलिंदे
समय की धूल के गर्त से ढकी
अपने अस्तित्व को बचाती रहेगी
ऐसा मत सोचना
मैं
तुम्हारी यादों को
समय के ताक पर रख
चैन की नींद सो जाऊंगा
और तब मेरी यादें
तुमहरी अस्तित्व के ऊपर
कुछ इस तरह फैल जाएगी
जैसे बरसाती मौसम मे
गंगा फैल जाती है
श्रद्धालुओं के दरवाजे तक
इसीलिए
जब मैं कोशिश करता हूँ
और तुम काट दिया करती हो
हर रोज मेरे फोन
और सहारा लेती हो
अपनी बात रखने के लिए
अपरिचित लोगों का
तो मैं एक नई ऊर्जा के साथ
तुम्हें भविष्य के लिए
तैयार करने मे जुट जाता हूँ
आत्मसम्मान की कीमत पर
ताकि कहीं कोई सिरफिरा
इस बाढ़ से निकालने की कीमत
तुम्हारी आत्मा से ज्यादा न मांग ले
तुम्हें सीखना होगा खुद ही
जज़्बातों की बाढ़ से निपटना
और बनना होगा मजबूत
मेरे सामने ही.
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