यहाँ नीरवता है,
एक शव जल रहा है
हाँ तुम्हारा शव जल रहा है
और उसे ताप रहा हूँ मैं
ढंढ मे गर्मी की खातिर
सीत मे लिपटी दूब की तरह
हर रोज नए अरमान लिए तुम
और तुम्हारे जज़्बात से बेखबर
मुझे सुबह की ताजगी चाहिए
शाम हुयी,
लौट रहे पंक्षी घरों को
और पिंजड़े मे कैद तुम
बाट जोहती बहेलिये का
सबकुछ छुपा लेती अपने भीतर
नहीं बहने देती लावा बनकर कभी
क्या तुम भी ज़िम्मेवार नहीं
अपनी पीड़ा का
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