मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

सांसदी



कह देता हूँ... सुधर जाओ 
वरना कहीं के नहीं रहोगे 
फिर घुमना सांसदी लेकर 
आज मैंने अपने बेटे को चेताया 
और पकड़ा दी खद्दर की टोपी 
कुर्ता पाजामा और एक झोला 

पत्नी हतप्रभ थीं, 
पूछा, आज क्या कह दिया 
वातावरण मे भारीपन कैसा 
सहमकर न कुछ खाया न पिया 
लाल आज घर मे ही दुबका रहा 

वाकई सूरज तेज चमक रहा था 
घर का भूगोल भी बदला सा दिखा 
आज पहली बार गायब थीं 
मेरी आलमारी से किताबें 
मैंने देखा मुस्कुरा रही थीं 
बेटे की टेबल पर 

मुझे खुशी है
सांसदों ने आज दे दिया 
वाकई मुझे वो उपहार 
जिसके बूते मैं संवार सकूँगा 
अपने बेटे का भविष्य
और फिर एक दिन बदल जाएगा 
पूरे देश का मिजाज 

शुक्रिया 13 फरवरी 2014 की भारतीय संसद
आज वाकई तुमने कमाल कर दिया 
शाबाश

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