शनिवार, 3 मई 2014

काला जादू

काला जादू में अक्सर देखिये
मन्त्र पढता है जादूगर
सब कुछ झोंक कर
भर लेना चाहता है झोली
वही ढीली झोली
जिसे मंच पर वो उडेलता है
सूरज की गोद में निंदियाये लोगों के बीच

अट्टहास करता
'दुनिया कदमो तले होगी'
ऐसी ही कुछ हसरत लिए
वो पालता है एक सपना
और अचानक ही
डर जाता है जादूगर
अपने ही अट्टहास से फिर
और डरा देता है इस डर से
अपने सामने बैठी लोगों की भीड़ को

भीड़ डरना जानती है
उसे नहीं आता सवाल
इसलिए वो नहीं करती विद्रोह
इस डर से उपजी एक शून्यता
और यही हासिल जादूगर का

पता नहीं आपने कही देखा है या नहीं
लेकिन अक्सर, जहाँ सपने बिकते हैं
एक अदद रोटी और धोती के
उसी भीड़ के बीच पाए जाते हैं
काला जादू करने वाले जादूगर
जो अपने डर से ही
खरीद लेते हैं बहुत कुछ
और छोड़ जाते हैं फकीरों को
जिनके कटोरे भरे होते हैं डर से !

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